नशीली रातें,
तारों की बातें,
बहती हुई हवाएँ,
आसमान की घटाएँ,
सब उन नग्मों के लफ़्ज़ों में खो गयी।
मन में छुपी जो धुन थी,
पवन ने गा दी
साँझ की परछाइयों में,
मैं घूम गयी।
खुद को इस रात में खोकर,
सेहर के धुएँ से आयी लौट।
अभी भी मग्न,
उस रात के नशे में।
बहुत बढ़िया
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