नमस्कार मित्रो! भारतीय
छोकरी होने के नाते अपनी मातृभाषा में आप सभी के लिए कुछ प्रस्तुत करना मेरा
कर्त्तव्य है. तो ये लीजिये,भारतीय छोकरी के कलम से भारत की भाषा में भारत की
बोली:
मैं हूँ हिंदी,
भारत की देवी,
हिंदुस्तान की बेटी.
मैं “कूल” तो नहीं हूँ.
पर “फूल” भी नहीं हूँ.
अंग्रेजी मेरे बाद आई,
फिर क्यों उसने इतनी शान
पायी?
मैं अंग्रेजी के समुन्दर
में डूब रही हूँ.
अकेली बैठे- बैठे ऊब रही
हूँ.
मैं एक दूसरी भाषा बनके रह
गयी हूँ.
अंग्रजी के सागर में बह गयी
हूँ.
मैं अंग्रजी से पुरानी हूँ,
मैं भारत की वाणी हूँ.
फिर ऐसा क्यों कि मैं
अपने ही घर में मेहमान बनके
रह गयी हूँ?
बच्चे मुझसे डरते है,
अंग्रजी का गुणगान करते है.
मैं एक गरीब, पुराने ज़माने
की भाषा बन गयी हूँ,
विद्यार्थियों की नजर में “टफ” बन चुकी हूँ.
ऐसा प्रतीत होता है कि मैं
अपने ही देश में मेहमान
हूँ.
अपनी ही मातृभूमिपे रास्ता
भटक चुकी हूँ.
ऐसा लगता है,
कि अब इस मिटटी में समां
जाना है.
यह सत्य लगता है,
कि मृत्यु को गले से लगाना
है.
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