ख्वाबों की खिड़कियाँ कुछ बंद सी है,
दिल की सोती उमंग सी है.
ख्वाबों के रंग ज़रा फीके पड़ गए हैं.
दिलों की बेताबियाँ अब धीमी सी हो गयी हैं.
ख्यालों के दरवाज़े पर कोई पहरा सा जमा है,
खुल कर सोचना भी गुनाह सा बन गया है.
मेरे प्रिय मनोबल,
अब सिर्फ तुझसे ही उम्मीद है.
इन दुश्मनों से लड़,
और डटकर सामना कर.
मुझे ख्वाबों के रंग फिर दिखा,
मुझे खुशी का अनुभव फिर करा.
मन में छुपी इस धुन पर इख़्तियार न रहने दे तू,
दिल के सभी अरमान अब पूरे कर ले तू.
मेरे सपनो को मार्ग दिखा,
मेरी आत्मा को निर्वाण दिला.
मेरे सपनो पर पहरा न आने दे तू,
बस जैसा मेरा दिल कहे,
वैसा कर तू.
No comments:
Post a Comment